दो दिवसीय सूरत प्रवास पर है हरिद्वार आश्रम के स्वामी दिव्यानंद जी महाराज भिक्षु
सूरत , 14 अक्टूबर । गीता ज्ञानेश्वर डाक्टर स्वामी दिव्यानंद महाराज ( भिक्षु ) ने कहा कि शहरी जीवन मे लोगो को एक दूसरे के साथ दूध एवं पानी की तरह मिलकर रहना चाहिये ना कि दूध एवं नींबू की तरह । दूध एवं नींबू मे अगर मिलाप हो भी जायें तो दोनो का आस्तित्व खतरे मे पड जाता है । स्वामी जी ने कहा कि अक्सर देखा जाता है कि शहरी कल्चर मे लोग पानी एवं तेल की तरह से रहते तो बिल्कुल निकट है लेकिन दोनो के बीच कभी भी मेल नही होता। हरिद्वार आश्रम के स्वामी दिव्यानंद महाराज अपने दो दिवसीय प्रवास पर सूरत मे है ।
पत्रकार से भेंट वार्ता मे हरिद्वार आश्रम के स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ने कहा कि आजकल लोगो का घर अभाव से कम बल्कि स्वभाव से ज्यादा टूट रहा है अपने स्वभाव से लोग स्वयं तो दुखी है ही, घर वालो के लिये भी दुख का कारण बने हुये है । घर-गृहस्थी में जरा सी बात पर धैर्य खो देना, आपे से बाहर हो जाना ? यह अधीरता है एवं अधीर व्यक्ति के धार्मिक होने पर प्रश्न चिन्ह लगता है । हम प्रतिदिन मंदिर मे जायें एवं लोग कहे कि फलां व्यक्ति बडा धार्मिक है उससे बेहतर यह होना चाहिये कि हम आत्मशुद्धि करें । पूजा पाठ आत्मशुद्धि के लिये होना चाहिये ना कि दिखावे के लिये ।शादी – विवाह मे आज कल व्याप्त कुछ कुरितियों पर चोट करते हुये डाक्टर दिव्यानंद जी महाराज ने कहा कि विवाह समारोह मे मेंहदी रस्म का चलन पहले मुस्लिम समाज मे था लेकिन अब मेंहदी रस्म हम सभी के यहा भी विवाह समारोह का एक हिस्सा बन चुका है । स्वामी जी ने कहा कि नदी मे पानी के तेज बहाव से आदमियो से भरी नौका नही डूबती बल्कि नौका मे सवार लोगो की घबराहट तथा उछलकूद नौका डूबने की वजह होती है । उन्होने कहा कि जीवन मे ” चार डी ” प्रभावी होते है एवं इस फैक्टर से किसी भी बडी से बडी समस्या को परास्त किया जा सकता है । सूरत प्रवास के दौरान स्वामी जी ने एसटीएम प्रेसीडेंट हरबंस लाल अरोरा के यहा विवाह समारोह मे भी हिस्सा लिया ।
वाह्य आडंबर से दूर करता है सदगुरू
स्वामी दिव्यानंद जी महाराज ने कहा कि आजकल बाबा लोग अपने शिष्यो को पहले निराश करते है एवं उसके बाद उन्हे उपाय बताते है । ” तुम्हारी ग्रह दशा खराब है ” सुनते ही शिष्य निराशा के गर्त मे जा गिरता है । शिष्य को निराशा के गर्त मे डूबोने वाले लोग सदगुरू नही बल्कि असद् गुरू है । आज कल के बाबा अपने शिष्य को कडवी डोज नही देते बल्कि मीठी दवाई बताते है जिससे फायदा की जगह उल्टे नुकसान होता है । ” सठ सुधरहि सत्संगति पाई ” सद्गुरू जिसको मिल जाता है उसका जीवन धन्य हो जाता है सदगुरू अपने शिष्य को अच्छी राह दिखाता है एवं आडंबर से दूर करता है