“89/4/बी के तहत रिफंड”की जटिल प्रक्रिया से खफा है स्पिनर्स
सूरत, 9 सितंबर। सरकार भले ही समय – समय पर उधोग-व्यापार के हित मे नित नई घोषणायें करती रही हो लेकिन कभी – कभी सरकार की यही नीतीयां उधमियो के लिये गले की फांस बन जाती है एवं नीतीयों को लेकर सरकार को आलोचना का शिकार होना पडता है। केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर विभाग मे 89 /4/बी के तहत दिये जाने वाले रिफंड को लेकर भी स्पिनर्स इन दिनो सरकार से काफी खफा है। स्पिनर्स ने 89/4/बी को लेकर सरकार के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है तो कई स्पिनर्स आने वाले दिनों मे कोर्ट जाने की सोच रहे हैं ।
सूत्रो से प्राप्त विस्तृत जानकारी के अनुसार केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर आयुक्तालय दमन एवं सूरत आयुक्तालय अन्तर्गत दमन सिल्वासा तथा वापी स्थित डिजीजनो मे कई स्पिनर्स ने गलत तरीके से हजारो करोड़ रूपये का रिफंड सीजीएसटी विभाग से ले लिया। सांप निकल जाने के बाद लाठी पीटने की तर्ज पर हजारों करोड रूपये का रिफंड लिये जाने के मामले मे भी इसके “अव्यवहारिक” होने का पता चलते ही कल तक 89/4 के तहत दिये जाने वाले रिफंड को सरकार ने 89/4/ बी के तहत दिया जाना अऩिवार्य कर दिया। सरकार ने भले ही भविष्य मे एैसी पुनरावृत्ति को रोकने के लिये एहतिहात बरतते हुये इसे 89/4/ बी के तहत रिफंड को अनिवार्य किया हो लेकिन अब सरकार का यह नियम स्पिनर्स के लिये परेशानी का सबब बन चुका है। सरकार स्पिनर्स को 89/4/ बी के तहत रिफंड देने को तैयार है लेकिन स्पिनर्स 89/4 के तहत रिफंड लेना चाहते है। सरकार एवं स्पिनर्स के आपसी द्वन्द मे स्पिनर्स अब बारी – बारी से कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे है।
एक को 300 करोड़, दूसरे को 143 करोड़ के रिफंड मामले मे भेजा नोटिस
गलत तरीके से लिये गये रिफंड का आंकडा कितना अधिक है कि इसका अंदाजा सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि सिल्वासा स्थित एक प्रमुख स्पिनर्स को 300 करोड रूपये के रिफंड लिये जाने के मामले मे सीजीएसटी ने नोटिस जारी किया है एवं एक अन्य स्पिनर्स को 143 करोड ते रिफंड मामले मे नोटिस दिया गया है और सरकार अब “गलत तरीके से” लिये गये रिंफड की रिकवरी करेगी। जानकारों की मानें तो करोडों की रिकवरी से बचने के लिये भी स्पिनर्स कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते है।
“फार्मूला” नही होने से है परेशानी
सू्त्रो की मानेें तो 89/4/बी के तहत दिया जा रहा रिफंड “अव्यवहारिक” तथा “जटिल” है इसके तहत एसेसी को ढेर सारी कागजी कार्यवाई करनी पडती है साथ ही रिफंड मे भी मामूली अंतर आता है। नाम न छापने की शर्त पर एक प्रमुख स्पिनर ने बताया कि 89/4/बी के तहत दिये जाने वाले रिफंड की प्रक्रिया मे एसेसी को सबसे ज्यादा परेशानी “फार्मूला” नही होने से है जिस पर सरकार को ध्यान देने की सख्त जरूरत है।
स्पिनर्स के साथ विभागीय अधिकारी भी दोषी ?
हजारों करोड़ रूपये के रिंफड दिये जाने के मामले मे गहन जांच की जायें तो पता चलेगा कि जितने दोषी स्पिनर्स है, उससे कही अधिक दोष संबधित डिवीजन मे तैनात सहायक आयुक्त तथा अधिक्षकों का रहा है। जिन डिवीजनों से करोड़ो रूपयों का रिफंड स्पिनर्स को दिया गया उन डिविजनों के सहायक आयुक्तो ने पूरे “होशो-हवास” से रिफंड इश्यू किया तो अब यह रिफंड गलत तरीके से लिया गया कैसे हो गया ? एैसे मे अब दोष करोडो रूपयो का रिफंड लेने वाले स्पिनर्स का ही क्यो ….? रिफंड देने वाले अधिकारियों का दोष क्यो नही ? रिफंड जारी करने वाले सहायक आयुक्त भी अगर मामले मे दोषी है तो उनके खिलाफ कड़ी विभागीय कार्यवाई क्यो नही की गई ? सूत्रो की मानें तो करोडो के रिफंड मामले से संबधित कई अधिकारियों को एक बार फिर से डिवीजन मे चार्ज सौंपा गया है ?