12 किमी विहार कर शांतिदूत पधारे भड़ोल ग्राम
सूरत, 3 दिसंबर। देश विदेश में हजारों किलोमीटर पदयात्रा कर जनता के हृदय में अहिंसा, नैतिकता की भावना को जगाते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जनकल्याण हेतु अनवरत गतिमान है। सूरत शहर को अध्यात्ममय बनाने के पश्चात आचार्य श्री अब भरूच, अंकलेश्वर, राजकोट, भुज आदि क्षेत्रों की ओर गतिमान है। एक ओर ठंड का मौसम सुबह सुबह शरीर में हल्की ठिठुरन पैदा करने लगा है वही जनकल्याण के लिए प्रतिबद्ध आचार्यश्री पदयात्रा करते हुए गांव गांव में सदाचार की अलख जगा रहे है। आज प्रातः आचार्यश्री ने ओलपाड से मंगल विहार किया। स्थानीय श्रावक समाज के निवेदन पर आचार्यश्री ने गांव के महावीर जैन भवन में पधार कर प्रेरणा प्रदान की। पूर्व में शहर विचरण के दौरान जहां हर ओर ऊंची ऊंची अट्टालिकाएं नजर आ रही थी वहीं अब विहार के दौरान हरे भरे खेतों, मैदानों ने उनका स्थान ले लिया। दांडी पथ पर लगभग 12 किमी विहार कर आचार्यश्री एक दिन के प्रवास हेतु भड़ोल के संस्कार भारती विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे।
मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा – मनुष्य के पास शरीर है तथा पांच ज्ञानेन्द्रिया व पांच कर्मेन्द्रियाँ भी हैं। इस मनुष्य जन्म में जो उच्च व प्रकृष्ट साधना हो सकती है वह किसी अन्य जन्म में नहीं हो सकती। मानव जन्म प्राप्त होने के बाद हमें जीवन कैसा जीना है यह मुख्य बात है। विनय धर्म का मूल है। जो विनम्र होता है वह संपत्ति अर्थात लाभ को प्राप्त करता है वहीं जो अविनीत होता है वह विपत्ति, आपदा को प्राप्त होता है। ज्ञान होने पर भी मौन रखना, शक्ति होने पर भी क्षमा रखना व दान के साथ नाम की आकांक्षा में मुक्त रहना यह कुछ विशेष गुण होते है। व्यक्ति के भीतर उपकार गिनाने की भावना न हो कि यह मैने किया, वह मैने किया। उपकार करके भूल जाओ, तुम्हारा उपकार प्रकृति याद रखेगी। वहीं जिस पर उपकार हुआ है वह जरूर कृतज्ञ भाव व्यक्त करे, किन्तु दान को गिनाना अच्छी बात नहीं होती। व्यक्ति सदा सत्पुरुषार्थ करते रहे। विद्यालय के प्रिंसिपल सुभाष पटेल ने गुरुदेव के स्वागत में अपने विचार रखे।