सत्संग का अर्थ है सत्य का संग,और परमात्मा ही सत्य है – स्वामी विनोदानंद सरस्वती

गोडादरा मे चल रहे ग्यारह दिवसीय राम कथा मे उमड़ रहा है भक्तो का सैलाब

सूरत, 18 अप्रैल । गोडादरा मे आयोजित ग्यारह दिवसीय रामकथा के‌ पहले दिन व्यासपीठ पर विराजमान दंडी स्वामी विनोदानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि सत्सगं का अर्थ है सत्य का संग और परमात्मा ही सत्य‌ है और भवसागर को पार करने के लिये सत्संग जरूरी है । दंडी स्वामी ने सूरत की भी बहुत ही सुंदर व्याख्या की ।

अपने प्रवचन मे दंडी स्वामी विनोदानंद सरस्वती ने कहा कि उऩ्होने यहा शहर मे सूरत‌ को जगह -जगह सुरत लिखा हुआ देखा । सुरत‌ दो शब्दो सु एवं रत से मिलकर बना है सु का अर्थ है सुन्दर एवं रत‌ का अर्थ है लीन रहना । सुंदरता का अर्थ‌ परम पिता परमेश्वर से है जिसमे लीन रहना ही सुरत‌ है । रामकथा के पहले दिन अपने प्रवचन मे स्वामी विनोदानंद सरस्वती जी ने देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत द्वारा माता सीता के पैर मे चोच‌ मारने से‌ लेकर उसके दुष्परिणाम की सुंदर व्याख्या‌ की । उन्होने कहा कि काक ( कौवा ) रूप मे जयंत‌ ने माता‌ सीता के दाहिने पैर के अंगूठे मे चोर मारी‌ एवं रूधिर  का प्रवाह हुआ जिससे व्यथित भगवान श्री राम ने तरकश से बाण निकाल कर जयंत को मारने के लिये उसका पीछा किया तब जयंत अपने पिता देवराज इन्द्र के शरण गया एवं उनसे बचाने की गुहार लगाई । लेकिन जयंत के पिता देवराज इन्द्र ने भी जयंत को शरण नही दी ।

दंडी स्वामी विनोदानंद सरस्वती ने कहा कि माता कौशल्या ने वन गमन से पूर्व भगवान श्री राम से कहा था कि वह ( सीता ) श्री राम के आंखो की पुतरी है और जयंत ने माता सीता के अंगूठे पर चोच मारकर सिर्फ उसे चोटिल नही किया बल्कि उसने भगवान श्रीराम के आंखो की पुतरी को‌ चोटिल किया । भगवान से द्रोह करने पर जयंय के पिता देवराज‌ इन्द्र ने भी अपने पुत्र का साथ नही दिया । 24 अप्रैल तक चलने वाले  रामकथा के सुंदर आयोजन के लिये‌ स्वामी जी ने आयोजक मुन्ना तिवारी एवं मुख्य यजमान पंकज तिवारी की सराहना की ।